Thomas Alva Edison Kaun Tha?

एक तीन साला बच्चा माँ के साथ अपने छोटे से एनिमल फॉर्म पर अंडे जमा कर रहा था। उसने देखा कि एक बतख अंडों पर बैठी है। वो दिलचस्पी और हैरानी से उसे देखे चला जा रहा था। उसने माँ से पूछा माँ ये बतख अंडों पर क्यों बैठती हैं? माँ ने कहा बेटा ये अंडों पर बैठकर इन्हे सेकती हैं, जिसके बाद इन अंडों से छोटे-छोटे बतख के बच्चे निकलते हैं। नन्हे बच्चे ने ये सुना, तो उसके छोटे से दिमाग में कई सवाल पैदा हो गए?

माँ बच्चे के साथ घर वापस आई, तो कुछ देर बाद बच्चा गायब हो गया। बेचारी माँ सारा दिन अपने नन्हे बच्चे की तलाश करती रही, लेकिन जब वो मिला, तो उसी फॉर्म हाउस में जहाँ पर वो सुबह माँ के साथ गया था। वो बच्चा कुछ अंडे जमा करके भूसे के ढेर पर रखकर, उनके ऊपर बैठा हुआ था। वो क्यूरियस (जिज्ञासु) बच्चा ये देखना चाहता था कि अगर बतख अंडों पर बैठकर बच्चे पैदा कर सकती है, तो वो ऐसा क्यों नहीं कर सकता?

अब शायद ये बताने की हरगिज जरुरत नहीं कि अंडे टूट चुके थे। 3 साला इस बच्चे की हरकत तो बहुत फनी थी, लेकिन इसकी यही जिज्ञासा इसे अपने दौर का ग्रेट साइंटिस्ट बना गया। इस बच्चे को आज दुनिया Thomas Alva Edison के नाम से जानती है। आज के इस आर्टिकल में हम आपको इसी दुनिया बदल देने वाले महान वैज्ञानिक की बॉयग्राफी बता रहे हैं।

Thomas Alva Edison Biography In Hindi –

नाम थॉमस अल्वा एडीसन
जन्म 11 फ़रवरी 1847
पिता सैमुअल ऑग्डेन एडिसन
माता नैंसी मैथ्यु इलियट
पत्नी मैरी स्टिलवेल (वि॰ 1871–84) ,मीना मिलर (वि॰ 1886–1931
राष्ट्रीयता अमेरिकी
व्यवसाय आविष्कारक, व्यापारी
संबंधी लुईस मिलर (ससुर)
धार्मिक मान्यता देववादी
बच्चे 1. मैरियन एस्टेल एडीसन (1873–1965) 2.थॉमस अल्वा एडीसन जूनियर (1876–1935) 3.विलियम लेस्ली एडीसन (1878–1937) 4 .मेडेलीन एडीसन (1888–1979) 5 .चार्ल्स एडीसन (1890–1969) 6.थिओडर मिलर एडीसन (1898–1992)
मृत्यु अक्टूबर 18, 1931 (उम्र 84)

1860 की बात है “अब्राहम लिंकन” अमेरिका का राष्ट्रपति बनने की तैयारी कर रहा था और देश में गृह युद्ध का माहौल था। उस दौर में अमेरिकी रियासत (स्टेट) मिशिगन में Port Huron (ह्यूरोन बंदरगाह) से Detroit तक एक ट्रेन चलती थी, जिसमे एक 12 साल का बच्चा Thomas Alva Edison अखबार और टॉफियां बेचता था। वो गरीब माँ-बाप का बच्चा था। सुनाई भी उसे कुछ ऊँचा ही देता था, बल्कि यूँ कहिये कि तकरीबन बहरा था।

इसके टीचर ने इसे 3 माह बाद ही स्कूल से निकल दिया कि इसका सर बहुत बड़ा था और उनका ख्याल था कि वो चीजें याद रखने की सलाहियत से महरूम (योग्यता से वंचित) था। इस पर इसकी माँ ने जोकि खुद एक टीचर थी, उसको घर पर ही पढ़ाना शुरू कर दिया।

कुदरत (नेचर) ने इसको बहुत थोड़ा दिया था, लेकिन सपने उसके बहुत बड़े-बड़े थे। वो एक कामयाब बिजनेसमैन बनना चाहता था। उसकी ख्वाहिश (इच्छा) थी कि अमेरिका के एक-एक घर में उसका नाम पहुँच जाये। इस बड़े सपने के लिए उसके पास तेज दिमाग तो था, लेकिन पूँजी बिलकुल भी नहीं थी। क्योंकि, कोई इन्वेस्टर उस पर इन्वेस्ट करने को तैयार नहीं था और उसके पास इन्वेस्टमेंट थी नहीं।

बचपन से Thomas Alva Edison का हाल यह था कि उसके हाँथ जो भी चीज आती, वो उसे खुद दुबारा बनाकर बेचने की कोशिश करता। अखबार बेचते-बेचते एक दिन उसे विचार (आईडिया) आया कि क्यों ना एक अपना अखबार निकाला जाय।

वो प्रिंटिंग प्रेस से अखबार लेने जाता था और मशीनों को काम करते हुए देखता रहता था। प्रिंटिंग प्रेस के काम करने के तरीके को समझने में उसे कोई मुश्किल नहीं हुई क्योंकि वो एक सादा सा प्रेस हुआ करता था। उसने अपना छोटा सा प्रिंटिंग प्रेस उसे देखते हुए बना लिया और इसे एक ट्रेन के सामान वाली बोगी में ही इंस्टॉल कर लिया। इसी मशीन पर वो खुद ही अखबार छापने और ट्रेन में बेचने लगा।

लोग पहली बार ऐसा अखबार देख रहे थे, जो एक अखबार बेचने वाले छोटे से लड़के ने खुद ही लिखा, खुद ही छापा और खुद ही बेचने का बंदोबस्त किया था। इसलिए कुछ लोग इसी शौक में यह अखबार खरीद लेते थे, लेकिन यह अखबार ‘न्यूज क्वालिटी’ में बड़े अखबारों का मुकाबला तो नहीं कर सकता था। इसलिए इसकी विक्री ना..होने के बराबर थी।

फिर यूँ हुआ कि एक दिन उस बोगी में जहाँ यह प्रिंटिंग प्रेस इंस्टॉल था, उसमे आग लग गई और Thomas Alva Edison का प्रिंटिंग प्रेस जलकर राख हो गया। वो चाहता तो प्रिंटिंग प्रेस दुबारा बना लेता। तरीका को तो वो सीख चूका था, लेकिन तब-तक वो ये भी समझ चूका था कि अखबार के बिजनेस में ज्यादा फायदा नहीं है। तो अब क्या किया जाय? उसे कोई सोने की खान तो मिलने से रही।

उसने ट्रेन की खिड़की से सिर बाहर निकाला और ट्रैक के साथ दौड़ते-भागते टेलीग्राफ के खम्भों को देखने और कुछ सोचने लगा। वो जानता था कि इन खम्भों पर लगी तारों में हजारों संदेशों के सिग्नल्स दौड़ रहे हैं। अखबार बेचने के दौरान उसने टेलीग्राफ के ऑफिसेस देखे थे और मशीनों की टिक-टिक-टिक-टिक आवाजें सुनी थी। उसने टेलीग्राफ ऑपरेटर को कोड्स वाला मैसेज लेकर उसे शब्दों में ढालते (डिकोड) करते देखा था।

उसने सोचा कि अगर वो प्रिंटिंग प्रेस बना सकता है, तो टेलीग्राफ मशीन क्यों नहीं बना सकता? बिलकुल उसी तरह, जिस तरह उसने सोचा था कि बतख अंडों से बच्चे निकाल सकती है, तो वो क्यों नहीं निकाल सकता? लेकिन अब जाहिर है..वो मेच्योर (प्रौढ़) हो चूका था।

अगर ऐसा हो सकता कि वो टेलीग्राफ मशीन बना सकता, तो वाकई ये उसके लिए सोने की खान का दरवाजा ही..था। मगर टेलीग्राफ मशीन, प्रिंटिंग मशीन से काफी पेचीदा थी। इसे समझने के लिए इसके करीब रहना, प्रिंटिंग प्रेस मशीन से कहीं ज्यादा जरुरी था। इसीलिए Thomas Alva Edison ने टेलीग्राफ ऑपरेटर बनने का फैसला कर लिया। मगर यहाँ परेशानी (मसाला) यह था कि उसे टेलीग्राफ के मुश्किल-मुश्किल कोड्स सिखाता कौन?

दोस्तों, ना जाने हर बार ऐसा क्यों होता है? कि जब आप कुछ करने की ठान लेते हैं, तो नेचर, कुदरत, प्रकृति आपकी पूरी-पूरी मदद करती है। ऐसा ही Thomas Alva Edison के साथ हुआ।

1862 में Thomas Alva Edison 15 वर्ष का था। उसने एक तीन साल के बच्चे को ट्रेन की चपेट में आकर मरने से बचाया। उस बच्चे के बाप ने Thomas Alva Edison को उसके इस एहसान का बदला देना चाहा, लेकिन Thomas Alva Edison ने इनकार कर दिया और कहा कि अगर वो वाकई में ही उसकी  मदद करना चाहते हैं, तो किसी तरह से उसे टेलीग्राफी सीखा दें या किसी ऐसे इंसान के बारे में बता दें, जो उसे यह सिखा सके।

अब इत्तेफाक देखें कि उस बच्चे का बाप खुद टेलीग्राफी जानता था। उसने अपने बेटे की जान बचाने की खुशी में Thomas Alva Edison को टेलीग्राफी के कोड्स सिखा दिए। अब Thomas Alva Edison ने अखबार बेचना छोड़े और टेलीग्राफ ऑपरेटर बन गया।

Thomas Alva Edison
Thomas Alva Edison

उस वक्त अमेरिका में गृह युद्ध जोरों पर था। अमेरिका दो हिस्सों में बट चूका था। आपस में खून-खराबा हो रहा था। हर तरफ से खबरों की भरमार थी। टेलीग्राफ मशीनों पर बार-बार युद्ध की ताजा-ताजा खबरें आती रहती थी। इसलिए काम के दौरान Thomas Alva Edison हर वक्त व्यस्त रहता। मगर ये जॉब उसकी मंजिल नहीं थी। यहाँ तो वो सिर्फ ये देखने के लिए आया था कि टेलीग्राफ मशीनों में आखिर कौन सी रॉकेट साइंस है? जो वो नहीं समझ सकता।

इसके साथी ऑपरेटर बस जैसे-तैसे काम का वक्त पूरा करते और घर को चले जाते। मगर Thomas Alva Edison काम के दौरान टेलीग्राफ मशीन को समझने में लगा रहता। सिग्नल भेजने और रिसीव करने में जो भी परेशानियां होती थी, उसने सब नोट कर रखी थी।

जब 1865 में अमेरिका में ग्रह युद्ध खत्म हो गया और काम का बोझ कुछ कम हुआ, तो Thomas Alva Edison फिर से अपने आईडिया यानि टेलीग्राफ मशीन बनाने पर जुट गया। अपनी जॉब के दौरान वो इस मशीन के बारे में बहुत कुछ सीख चूका था। इसलिए उसने अब दिन की शिफ़्ट छोड़कर रात में काम करना शुरू कर दिया।

नाईट शिफ्ट में काम ज्यादा नहीं था, लेकिन एक्सपीरियंस लेने के लिए बहुत वक्त था। वो सोचने लगा कि इन मशीनों को चलाने के लिए भला इतने टेलीग्राफ ऑपरेटर क्यों चाहिए?, क्या कोई मशीन ऑटोमेटिक तरीके से कोडेड मैसेज को डिकोड नहीं कर सकती?, क्या एक ही मशीन से एक टाइम में कई जगहों पर  मैसेज भेजना मुमकिन है? उसे लगा कि ये सब मुमकिन है। अगर कोशिश की जाय। इसलिए अब उसने ऐसी टेलीग्राफ मशीनों को डिजाइन करना शुरू कर दिया, जो ये सारे काम कर सकें।

Thomas Alva Edison ने 7 साल तक टेलीग्राफ ऑपरेटर की नौकरी की, लेकिन ये सिर्फ एक नौकरी नहीं थी। इस दौरान वो इतना कुछ सीख चूका था कि अपनी टेलीग्राफ मशीन बनाकर पुरानी मशीनों का बोरिया-बिस्तर गोल कर सकता था। वही मशीनें, जिन्हे चलाते हुए उसे 7 साल हो गए थे।

1869 में Thomas Alva Edison ने नौकरी छोड़ दी। उसने 7 साल तक टेलीग्राफ ऑपरेटर की नौकरी करके जो कुछ सीखा था। अब उसकी बुनियाद पर दौलत (धन) कमाने का वक्त आन पहुँचा था।

टेलीग्राफ ऑपरेटर की नौकरी के दौरान वो कई शहरों में घूमता-घामता बोस्टन पहुँच चूका था, लेकिन नौकरी छोड़ने के बाद उसने न्यूयार्क की राह पकड़ी। उसकी जेब में सिर्फ उधार लिए हुए चंद डॉलर थे, लेकिन उसकी असल तिजोरी तो उसका दिमाग था, जिसमे हजारों आईडियाज का खजाना भरा था। जब उसने ये तिजोरी न्यूयार्क शहर के बिजनेसमैनों के सामने खोली, तो कुछ मेहरबान लोगों ने उसके आईडियाज पसंद किये। इन मेहरबानों से उसे इन्वेस्टमेंट मिलने लगी और इस रकम से Thomas Alva Edison ने मॉडर्न टेलीग्राफ के अपने आईडियाज पर काम शुरू कर दिया लेकिन, इसका पहला अविष्कार टेलीग्राफ मशीन नहीं था। जानते हैं ये पहला अविष्कार क्या था?

Thomas Alva Edison
Thomas Alva Edison

आज भारत समेत दुनिया भर में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के बहुत चर्चे हैं, लेकिन दुनिया के सबसे पहले इलेक्ट्रॉनिक वोट रिकॉर्डर का अविष्कार 150 वर्ष पहले 1869 में Thomas Alva Edison ने किया था, मगर यह अविष्कार कमर्शियल नहीं हो सका। राज नेता इस अविष्कार के इस्तेमाल में हिचकिचा रहे थे। शायद उन्हें इस अविष्कार की वजह से इलेक्शन में धांधली होने का खतरा था। इसलिए Thomas Alva Edison ने फैसला कर लिया कि अब वो सिर्फ ऐसी चीजें डिजाइन करेगा, जिनकी मार्केट वैल्यू हो, जिनके खरीदार बड़ी तादात में मौजूद हों। इसलिए उसने टेलीग्राफ मशीनों के अपने पुराने आईडियाज पर ही काम फिर से तेज कर दिया क्योंकि इन मशीनों की डिमांड मार्केट में तेजी से बढ़ रही थी।

फिर यूँ हुआ कि जल्द ही इसकी बनाई हुई ऑटोमेटिक टेलीग्राफ मशीन एक ही टाइम में कई जगहों पर मैसेज भेजने वाले मल्टीप्लेक्स टेलीग्राफ और प्रिंटिंग मशीनों में, कम्युनिकेशन वर्ल्ड में, एक इंकलाब ला दिया। देखते ही देखते पुरानी मशीनों का डब्बा गोल हो गया और हर जगह Thomas Alva Edison के नाम का डंका बजने लगा।

Thomas Alva Edison को कामयाबी (सफलता) क्या मिली कि अपने-पराये सब उसकी तरफ दौड़े चले आये। बड़े-बड़े इन्वेस्टर्स मैदान में कूदे और  Edison की झोली नोटों से भर दी। एडिसन ने 7 साल टेलीग्राफ ऑपरेटर की नौकरी करके जो तजुर्बा (अनुभव) हासिल किया था। अगले 7 साल में उसने इसे कामयाबी से कैश करवाया। टेलीग्राफ का बिजनेस वाकई में उसके लिए सोने की खान साबित हुआ था।

29 वर्ष की उम्र में वो एक कामयाब दौलतमंद बिजनेसमैन बन चुका था, लेकिन ये दौलत अभी उसके उम्मीदों से बहुत कम थी। वो बहुत ऊँचा उड़ना चाहता था। इसलिए उसने अपना बिजनेस अंपायर खड़ा करने का फैसला किया। ऐसा बिजनेस अंपायर जहाँ वो ऐसी चीजें डिजाइन और तैयार कर सके, जो देखने वालों के होश उड़ा दे। वो अमेरिका का सबसे बड़ा ब्रांड बनना चाहता था।

शो 1876 में Thomas Alva Edison ने न्यू जर्सी के इलाके Menlo Park में अपनी एक लेबोरेटरी और वर्क शॉप बनाई। यह वर्क शॉप 34 एकड़ पर फैली हुई थी। यहाँ काम करने के लिए उसने अमेरिका के बेहतरीन साइंटिस्ट और इंजीनियर्स एम्प्लॉई रखे और एक जबर्दस्त, इंटेलिजेंट टीम तैयार की। यहाँ पर वो ऐसे अविष्कार करना चाहता था, जिन्हे वो आम लोगों के लिए फौरी तौर पर तैयार करके मार्केट में ला सके। यूँ वो कम टाइम में, कम मेहनत में ज्यादा मुनाफा कमा सकता था।

ऐसे अविष्कार के लिए उसे ज्यादा गौरो फिक्र (चिंता) की जरुरत भी नहीं थी। साइंटिस्ट बिजली से लेकर आवाज और तस्वीर रिकॉर्ड करने वाली मशीनें तक बनाने की कोशिशों में थे, लेकिन वो सब कुछ लैबोरेट्रीज के बंद माहौल में हो रहा था। एक तहकीकी (रिसर्च) काम की सूरत में ये सब कुछ हो रहा था। अभी बहुत सी टेक्नोलॉजीज कमर्शियल नहीं हुई थीं। इसके उलट Thomas Alva Edison की खूबी यह थी कि उसे टेक्नोलॉजी को कमर्शियल करने का फन, हुनर, टैलेंट, आ गया था। तो Thomas Alva Edison ने ये किया कि सबसे पहले मौजूद टेक्नोलॉजीज को ही इस्तेमाल करते हुए ऐसी चीजें बना डाली, जिन्हे आम लोग भी इस्तेमाल कर सकें।

अपने इन्हीं जबर्दस्त अविष्कारों की वजह से वो Menlo Park का जादूगर कहलाया। इन अविष्कारों में पहला अविष्कार था ‘फोनोग्राफ’. यह रिकॉर्डिंग की इतनी सादा सी डिवाइस थी कि इस पर रिकॉर्ड की गई आवाज सिर्फ एक पिन की मदद से सुनी जा सकती थी और वो भी साफ-साफ। फोनोग्राफ पर पहली आवाज भी Thomas Alva Edison की ही थी, जिसमे उसने बच्चों की मशहूर कविता Mary had a little Lamb गायी।

यह सिलेंडर जैसी सादा सी मशीन दर असल Thomas Alva Edison का फोनोग्राफ था, जो आवाज रिकॉर्ड करने की पहली कमर्शियल डिवाइस थी। इस अविष्कार ने अमेरिका में तहलका मचा दिया था। अमेरिका के राष्ट्रपति और कांग्रेस ने Thomas Alva Edison को बुलाकर इस डिवाइस का कमाल अपने सामने देखा। बाद में यही डिवाइस ग्रामोफोन के नाम से अमेरिका के घर-घर पहुँच गई।

Phonograph And Gramophone
Phonograph And Gramophone

दोस्तों, फोनोग्राफ और ग्रामोफोन में फर्क था। यह अलग-अलग डिवाइसेस थीं और ग्रामोफोन तो Thomas Alva Edison का खुद का अविष्कार भी नहीं था, बल्कि बाद में हुआ, लेकिन ग्रामोफोन का नाम इतना मशहूर हुआ कि उस दौर में कई रिकॉडिंग डिवाइसेस ग्रामोफोन ही कहलाने लगे। मगर फोनोग्राफ या ग्रामोफोन तो अभी शुरुआत थी। Menlo Park के जादूगर के पिटारे से एक और आईडिया निकला, जिसने एक बार फिर से सब को हैरान कर दिया। यह आईडिया था, हर अमेरिकी घर को बिजली से रौशन करने का।

अमेरिका और यूरोप की रातें तो 1850 से पहले ही रौशन होना शुरू हो गई थीं। बिजली के टावर्स भी लग चुके थे और गलियों में रात को बड़ी-बड़ी आर्कलाइट रौशन हो जाती थीं, लेकिन मसला (प्रॉब्लम) यह थी कि ये आर्कलाइट्स इतनी ज्यादा रौशनी देती थीं और इतनी गर्मी पैदा करती थीं कि इन्हे घरों में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था। सिर्फ पार्क्स या चौराहों पर ही इन्हे ऊँचा करके लटकाया जा सकता था। घरों में लोग अब-तक तेल या गैस से रौशनी का इन्तिजाम करते थे।

तो 1878 में Thomas Alva Edison ने रिपोर्टर्स के सामने यह डींग मार दी कि वो जल्द ही अमेरिकी घरानों को बिजली से रौशन कर देगा। अब इतना बड़ा साइंटिस्ट जब यह दावा करे, तो अमेरिकियों का इंतिजार करना तो बनता था। शो, वो यह इंतिजार करने लगे।

Thomas Alva Edison का ख्याल था कि अगर एक आर्क लैम्प यानी बल्ब को तेल या गैस की जगह बिजली से रौशन कर दिया जाय, तो इसकी रौशनी बढ़ जाएगी और आर्कलाइट की तरह आँखों में चुभेगी भी नहीं। उसने अंदाजा लगाया कि अगर लैम्प में से हवा निकाल दी जाय यानी वैक्यूम पैदा कर दिया जाय और फिर इस लैम्प में कुछ बारीक सी तारें (वायर) डालकर इनमे से करंट गुजारा जाय, तो लैम्प रौशन हो जायेगा।

इन बारीक से तारों (वायर्स) को फिलामेंट का नाम दिया गया, लेकिन Thomas Alva Edison खुद कहा करता था कि आईडिया किसी भी प्रोजेक्ट का सिर्फ 1% होता है, बाकी 99% अथक मेहनत से ही पूरा हो पाता है। तो इसी 99% पर उसने काम शुरू कर दिया।

पहला स्टेप यानी लैम्प (बल्ब) में वैक्यूम पैदा करना, तो कोई खास मुश्किल नहीं था, उसकी लेबोरेटरी में यह काम हो सकता था। असल मुश्किल थी इसमें लगने वाले तारों यानि फिलामेंट की तैयारी। सवाल यह था कि ये फिलामेंट कौन से मटेरियल का बनेगा? वो मटेरियल, जिसमे से करंट नहीं गुजर (पास) हो सके और वो मटेरियल करंट को बर्दाश्त नहीं कर सके क्योंकि, ऐसे किसी मटेरियल का वैज्ञानिकों को उस वक्त तक इल्म (ज्ञान) नहीं था।

Thomas Alva Edison ने सबसे पहले कागज का एक फिलामेंट बनाया, लेकिन जब इसमें से करंट गुजरा (पास) किया गया, तो इसके पुर्जे-पुर्जे हो गए। इसके बाद तो जैसे एलिमेंट्स की एक कतार (लाइन) लग गई। एडिसन और उसकी टीम के सामने जो भी चीज आती, जो मटेरियल आता, वो उससे करंट पास करके देखते कि क्या बल्ब जला है? इन जुनूनी एक्सपेरिमेंट में उन्होंने घोड़ों के बाल, नारियल के रेशे, मकड़ियों के जाले यहाँ तक कि कुछ कर्मचारियों के दाढ़ियों के बाल तक टेस्ट करके देखे, लेकिन करंट के आगे कोई भी एलिमेंट नहीं ठहर रहा था।

एक बार प्लेटेनियम के फिलामेंट का तजुर्बा (एक्सपेरिमेंट) कामयाब रहा। मगर प्लेटेनियम बहुत ही मंहगी धातु थी। इसे कमर्शियली इस्तेमाल करना नामुमकिन था। अगर इसे इस्तेमाल किया जाता तो, जाहिर है बल्ब इतना मंहगा हो जाता कि आम अमेरिकी और दुनिया में आम लोग इसे खरीद ना पाते।

दर असल Thomas Alva Edison एक सस्ता बल्ब बनाना चाहता था, जो हर घर में पहुँच सके। इसलिए उसने प्लेटेनियम के फिलामेंट को दर-किनार कर दिया और अपनी टीम को एक्सपेरिमेंट जारी रखने का निर्देश दिया।

लगभग 1 साल की मगजमारी (परिश्रम) और 6 हजार मटेरियल्स टेस्ट करने के बाद Thomas Alva Edison की टीम एक सस्ता और टिकाऊ फिलामेंट  बनाने में कामयाब हुई और यह था कार्बन का फिलामेंट। हालाँकि तारीख में यह कंट्रोवर्सी (विवाद) आज तक मौजूद है कि कार्बन फिलामेंट के अविष्कार का शेहरा (ताज) किसके सर पर बांधा जाय? “Thomas Alva Edison के सर पर या फिर इसके एक अश्वेत कर्मचारी Lewis Howard Latimer के सर”।

वेस्टइंडीज के मशहूर क्रिकेटर “Michael Anthony Holding” समेत बहुत से लोगों का यह ख्याल है कि कार्बन फिलामेंट का अविष्कारक Thomas Alva Edison नहीं, बल्कि Lewis Howard Latimer ने किया था। अश्वेत कर्मचारी को इस अविष्कार का शेहरा देने वाले लोगों का ख्याल है कि इन श्वेत नस्ल परस्तों ने एडिसन को फिलामेंट बनाने का क्रेडिट देकर अश्वेतों के साथ नाइंसाफी की है। तारीख को मस्क किया है।

अब कार्बन फिलामेंट भले Lewis Howard Latimer ही ने बनाया हो, लेकिन इसका कमर्शियल फायदा बहरहाल Thomas Alva Edison ही ने उठाया। उस दिन बिजली से जलने वाला बल्ब तैयार कर लिया गया। अब वक्त था इसकी आजमाईश (जाँच) का। 1879 में उसने कार्बन के फिलामेंट से बल्ब तो बनाया ही और 13 घंटे तक इसे रौशन (जलाये) रखने में कामयाब रहा।

यह एक ऐसा अविष्कार था, जिसने दुनिया में बहुत बड़ी तब्दीली (परिवर्तन) लेकर आना था। शो, Thomas Alva Edison ने नए साल के मौके पर अपने इसी अविष्कार की नुमाइश (एग्ज़िविशन) का ऐलान किया। ऐलान होते ही दूर-पास के लोगों ने एग्ज़िविशन में पहुँचने की सर-तोड़ कोशिशें शुरू कर दी।

31 दिसंबर 1879 की रात Thomas Alva Edison की लेबोरेटरी के बाहर अच्छी-खासी भीड़ जमा थी। वो लेबोरेटरी के बाहर गैस लैंप्स की जगह बिजली के रौशन (जलते) हुए बल्ब देखकर पुरजोश (उत्साहित) हो रहे थे, लेकिन जाहिर है असल नुमाइश (एग्ज़िविशन) तो लेबोरेटरी के अंदर थी।

एडिसन ने जैसे ही लेबोरेटरी के दरवाजे खोले, तो बेचैन लोग तेजी से एक ऐसी दुनिया में पहुँचे, जो रात के वक्त भी दिन का मंजर (दृश्य) पेश कर रही थी। लेबोरेटरी में 25 बल्ब एक साथ रौशन थे, जिनकी रौशनी लेबोरेटरी में रखी सैकड़ों बोतलों के शीशे से टकराकर बहुत ही दिल फरेब शमा पैदा कर रही थीं। उस वक्त के हिसाब से यह एक नाकाबिले यकीन (विश्वास ना होने वाला) मंजर (दृश्य) था क्योंकि कमरों के अंदर बिजली के बल्ब का (तसव्वुर) कल्पना और इतनी रौशनी की कल्पना, उस वक्त नहीं थी।

एडिसन का यह नया अविष्कार देखने वालों को बहुत पसंद आया। इस नए अविष्कार पर अख़बारों में सुर्खियां (हैडलाइंस) भी लगी। “एडिसन का Electrical Bulb” अमेरिकियों के लिए नए साल का तोहफा (गिफ्ट) था। अब एडिशन अपने दावे के मुताबिक Manhattan को जोकि New York City का एक इलाका है, रौशन कर सकता था। मगर इसमें प्रॉब्लम्स थी, वही ब्यूरोक्रेसी के मसले, ये फरमान, वो NOC, यहाँ दरखास्त, वहां साइन, वगैरह-वगैरह। सारी फॉर्मेल्टीज पूरी करने के बाद आखिरकार एडिसन ने Manhattan को बिजली सप्लाई करने का इजाजतनामा (अनुमति) हासिल कर ली।

अब बड़े पैमाने पर बिजली सप्लाई के लिए बड़ा बिजली घर भी चाहिए था। बड़े बिजली घर का मतलब था, बड़ी इन्वेस्टमेंट। जिसका अब जाहिर है एडिसन के लिए मसला नहीं रहा था। अमेरिका के सबसे दौलतमंद लोग उसके आईडियाज पर पैसा पानी की तरह बहाने को तैयार बैठे थे। उन्हीं दौतलमंदों में J P Morgan भी था। वही J P Morgan जिसकी एक कंपनी टाइटैनिक जहाज की मालिक थी। यही J P Morgan, Thomas Alva Edison का इन्वेस्टर था।

J P Morgan
J P Morgan

J P Morgan को यकीन था कि यह बेहतरीन बिजनेस इन्वेस्टमेंट है। अगर अमेरिका के घर बिजली से रौशन होने लगे, तो सारी इन्वेस्टमेंट बेपनाह मुनाफे के साथ वापस आ जाएगी। चुनांचे J P Morgan की मदद से Thomas Alva Edison ने Lower Manhattan के इलाके Pearl Street में एक बिजली घर बनाया। यहाँ 30-30 टन वजनी जनरेटर्स रखे गए। जमीन के अंदर बिजली की तारें बिछाई गई।

फिर 04 सितम्बर 1882 को बिजली घर में एक बटन दबाते ही Lower Manhattan का एक 1 मुरब्बा (वर्ग) मील का इलाका रोशनियों से जगमगाने लगा। गलियां और घर इलेक्ट्रिक बल्ब से रौशन हो गए थे। इंसान के चाँद पर जाने से पहले तक यह इंसानी तरक्की में एक बहुत बड़ी छलांग थी, लेकिन यह छलांग Menlo Park के जादूगर Thomas Alva Edison को बहुत मंहगी पड़ी थी क्योंकि, अब उसके हांथों के तराशे हुए पत्थर के सनम भी उसके सामने आ खड़े हुए थे। यह कैसे हुआ?, वो कौन था?

एक दिन Thomas Alva Edison अपनी आँखों के सामने अपनी जिंदगी भर की कमाई को जलते हुए देख रहा था, लेकिन आग बुझाने की कोशिश नहीं कर रहा था, बल्कि एक कागज पर कुछ नोट कर रहा था। वो क्या नोट कर रहा था? Thomas Alva Edison का दुनिया की फिल्म इंडस्ट्री पर वो एहसान क्या है? जिसे कभी नहीं झुठलाया जा सकता है। आइये जानते हैं।

बिजली के बल्ब को घर-घर पहुँचाने वाले Thomas Alva Edison की जिंदगी उस वक्त मायूसी से अंधेर हो गई, जब उसका यही प्रोजेक्ट नाकाम (असफल) हो गया। वो बिजली का बल्ब बनाने का सेहरा तो अपने सर पर सजा चूका था, लेकिन इस बल्ब के लिए बिजली कोई और बनाने लगा था और एडिसन अपना सब कुछ खो रहा था। यही नहीं, बल्कि एक मौके पर उसकी जिंदगी भर की कमाई को उसकी आँखों के सामने आग लग गई और सब कुछ जलकर राख हो गया। एडिसन ने इस सारी सूरते हाल (स्तिथ) का मुकाबला कैसे किया?

हुआ यह कि Thomas Alva Edison ने इलेक्ट्रिक बल्ब तो बना लिया था, लेकिन साथ ही उसके प्रतियोगियों (Competitors), उसके रद्दे मुकाबिल दूसरे बिजनेसमैन भी उससे बेहतर टेक्नोलॉजी के लिए कोशिशें कर रहे थे। वह इस कोशिश में बहुत बड़ी इन्वेस्टमेंट करने को भी तैयार थे, जिसमे उन्हें एडिसन से बेहतर बल्ब बनाने में कामयाबी हासिल हो।

बहुत से बिजनेसमैन किसी ऐसे शख्स की तलाश में थे, जो एडिसन की तरह जीनियस हो। जिसकी मदद से वो एडिशन से बेहतर टेक्नोलॉजी बनाने और बेचने में कामयाब हो सकें। वो एडिसन को मार्केट से आउट करके पावर सप्लाई के बिजनेस पर एकाधिकार (Monopoly) कायम करना चाहते थे। मुकम्मल कब्जा करना चाहते थे। जैसा कि उस वक्त एडिसन का नजर आ रहा था।

फिर हुआ यह कि उन्हें Thomas Alva Edison की ही कंपनी से एक ऐसा जीनियस मिल गया, जिसे वो एडिसन के मुकाबले पर खड़ा कर सकते थे और इस जीनियस का नाम था “Nikola Tesla”.

Nikola Tesla
Nikola Tesla

क्रोएशिया (Croatia) में जन्म लेने वाला वैज्ञानिक “Nikola Tesla” न्यूयार्क में Thomas Alva Edison ही का एम्प्लॉई था। मगर एडिसन की एक कमजोरी ने टेस्ला को इसका दुश्मन बना दिया। एडिसन पर आरोप (इल्जाम) लगता है कि वो भले बला का जीनियस था, लेकिन बेहद खुदगर्ज भी था। मतलब निकल जाने पर आँखें फेर लेना, उसके लिए कोई बात ही नहीं थी।

एक बार एडिसन ने टेस्ला से कहा कि वो अगर उसके सारे जनरेटर ठीक कर दे, तो वो टेस्ला को 50 हजार डॉलर बोनस देगा। टेस्ला जोकि उसका एम्प्लॉई था, उसने बोनस के लालच में खूब काम किया और सारे जनरेटर जल्दी-जल्दी ठीक कर दिए, लेकिन जब वो बोनस लेने पहुँचा, तो एडिसन ने कहा कि बोनस वाली बात तो मैंने मजाक में कही थी। यह मजाक था या धोखेबाजी? लेकिन टेस्ला को यह बहुत जोर से लगा। वो दिल बर्दाश्त्ता होकर नौकरी छोड़ आया।

एडिसन ने 50 हजार डॉलर बचाने के लिए जो एम्प्लॉई खोया था। वो नहीं जानता था कि यही एम्प्लॉई उसके सारे अंपायर पर भारी पड़ने वाला है।

Nikola Tesla, जल्द ही Thomas Alva Edison के मुकाबले की टेक्नोलॉजी मार्केट में ले आया। यह टेक्नोलॉजी थी Alternating current (AC). उधर एडिसन जिस बिजली से बल्ब जला रहा था, वो Direct current (DC) था। अब मसला यह था कि एडिसन का डीसी करंट कम वोल्टेज वाला था और लम्बी दूरी तक करंट नहीं पहुँचा सकता था। उसे ज्यादा दूरी तक बिजली पहुँचाने के लिए हर 1 मील की दूरी पर नया बिजली घर बनाना पड़ता था। मतलब हर 1 मील पर नया खर्चा, नई इन्वेस्टमेंट। जबकि टेस्ला का एसी करंट एक ही बिजली घर से पूरे शहर को रौशनी दे सकता था और एक ही बिजली घर हजारों मील दूर तक भी बिजली पहुँचा सकता था। अब यह एक गेम चेंजिंग टेक्नोलॉजी थी, एक गेम चेंजर था।

Thomas Alva Edison और J.P Morgan के Arrivals, इनके मुकाबले के बिजनेसमैन और इन्वेस्टर्स ऐसी ही किसी टेक्नोलॉजी के इंतिजार में तो थे। उन्होंने टेस्ला के आईडिया को समझा और उस पर डॉलर्स की बारिश कर दी।

एक बड़ी बिजनेस कंपनी Westinghouse Electric Corporation ने टेस्ला से एसी करंट के अधिकार (राइट्स) 10 या 15 लाख डॉलर्स में खरीद लिए। एसी करंट की पैदावार शुरू हो गई। न्यूयॉर्क के बहुत से घरों को एसी करंट से बिजली की सप्लाई भी मिलने लगी। अब होना तो यह चाहिए था कि एडिसन एक बिजनेस आईडिया का मुकाबला, बिजनेस आईडिया से करता। मगर वो जिद्दी और अना परस्त (अभिमानी) साबित हुआ। उसे घमंड था कि उसकी टेक्नोलॉजी सबसे बेहतर है और इसका कोई मुकाबला नहीं, दूर-दूर तक। इस खुशफहमी या गलतफहमी में वो एसी करंट का फैलाव रोकने की कोशिशें करना लगा। Thomas Alva Edison और Nikola Tesla के इस टकराव को तारीख में “War of the currents” के नाम से याद किया जाता है।

“War of the currents” में एडिसन ने हर बुरा खेल खेला। उसके कहने पर जानवरों को एसी करंट लगाकर मारा गया। यहाँ तक कि एडिसन ने इंसानों को  सजा-ए-मौत देने के लिए भी एसी करंट इस्तेमाल करने का मशवरा दिया। वो यह सब इसलिए कर रहा था कि एसी करंट, उसके मुकबले टेस्ला की ईजाद (खोज) थी और वो एसी करंट का टेस्ला का मुकाबला करने के बजाय, एसी करंट को ओछे हथकंडों से बदनाम करने पर तुल गया था। एसी करंट के खिलाफ उसने हजारों पर्चे छपवाकर भी लोगों में बांटे।

यह सब कुछ इसलिए किया गया ताकि एसी करंट को खतरनाक सबित करके मार्केट में टेस्ला का और एसी करंट का नाम बदनाम किया जाय। लोग एसी करंट से डरने लगें और यह टेक्नोलॉजी फ्लॉप हो जाय, लेकिन कोई टेक्नोलॉजी भला सिर्फ प्रोपेगेंडा के जोर पर मार्केट से आउट हो सकती है, भला? नई और सस्ती टेक्नोलॉजी, जो बेहतर भी हो, उसे हराना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन होता है।

Thomas Alva Edison तो जिद पर अड़ा हुआ था, लेकिन उसका बिजनेस पार्टनर J.P. Morgan बात समझ गया था। वो जान गया था कि एडिसन की जिद उसकी सारी इन्वेस्टमेंट डुबो सकती है। इसलिए उसने बिजली के मार्केट में बने (In) रहने के लिए वही किया, जो एडिसन ने टेस्ला के साथ किया था यानि J.P. Morgan ने एडिसन के साथ अपने पुराने संबंधों को लिहाज किये बगैर खुदगर्जी दिखाई और General Electric के नाम से अपनी अलग पावर कंपनी बना ली।

चूँकि एडिसन की पावर कंपनी भी J.P. Morgan के इन्वेस्टमेंट पर ही चल रही थी। इसलिए उसने यह कंपनी भी जनरल इलेक्ट्रिक में मर्ज कर ली। हालाँकि नई कंपनी में एडिसन के शेयर तो मौजूद रहे। मगर फैसलों का अधिकार J.P. Morgan के पास चला गया। इस सारी सूरतेहाल (स्तिथ) में एडिसन की आखिरी उम्मीद यह थी कि 1893 में शिकागो में होने वाली प्रदर्शनी “The World’s Columbian Exposition” में इलेक्ट्रिक सप्लाई का ठेका उसे मिल जाय। यह प्रदर्शनी “क्रिस्टोफ़र कोलम्बस” के अमेरिका खोजने के 400 साल पूरे होने पर आयोजित की जा रही थी।

1893 में होने वाली इस प्रदर्शनी को बिजली से रौशन करने का ठेका, अगर जनरल इलेक्ट्रिक को मिल जाता, तो Thomas Alva Edison के लिए कुछ फेस सेविंग हो सकती थी क्योंकि जनरल इलेक्ट्रिक अभी तक एडिसन का बनाया डीसी करंट इस्तेमाल कर रही थी, लेकिन जाहिर है यह करंट तो एसी करंट के मुकाबले में बहुत मंहगा था। इसलिए जब पावर सप्लाई के लिए बोली लगाने का वक्त आया, तो जनरल इलेक्ट्रिक ने 10 लाख डॉलर्स की बोली लगाई। जबकि Westinghouse Electric ने इससे आधी सिर्फ 5 लाख डॉलर्स की बोली लगाई। यह एडिसन के डीसी करंट की आखिरी शिकश्त (हार) थी, बल्कि मौत थी।

इसके बाद एडिसन बिजली के बिजनेस से आउट हो गया और जनरल इलेक्ट्रिक ने भी धीरे-धीरे अपने प्लांट्स को एसी करंट पर मुंतकिल ( हस्तान्तरित) करना शुरू कर दिया। यह सब कुछ एडिसन की जिद का नतीजा था और उसकी हठधर्मी के कारण हुआ था। अगर वो अपने बर्ताव में लचक दिखता और पहले ही डीसी की जगह एसी करंट इस्तेमाल करना खुद भी शुरू कर देता, तो बिजली के बिजनेस से शायद आउट ना होता। मगर उसके अभिमान ने उसे हरा दिया।

बिजनेस की बेरहम मुकाबले बाजी में पहली बार एडिसन को शिकश्त (हार) का जहर चखना पड़ा था और वो भी अपने उस कर्मचारी के हांथों, जिसे उसने महज चंद डॉलर के बदले नौकरी छोड़ने पर मजबूर किया।

इस नाकामी के बाद उसके कॉम्पिटिटर समझ रहे थे कि अब एडिसन की बत्ती गुल हो गई और वो कोई नया और बड़ा प्रोजेक्ट शुरू नहीं कर सकता, लेकिन Menlo Park के जादूगर के पिटारे में अभी बहुत से आईडियाज बाकी थे। उसने पिटारे में हाँथ डाला और वीडियो कैमरा निकाल लिया। देखने वालों की आँखे फिर खुली की खुली रह गईं।

Thomas Alva Edison ने एक बार फिर पुरानी टेक्नोलॉजी को बेहतर करके बेच दिया। वीडियो कैमरा की टेक्नोलॉजी पुरानी ही थी। ब्रिटिश साइंटिस्ट Muybridge’s 1880 से इस पर काम कर रहे थे। कैमरों से बनाई हुई तस्वीर को दायरे की शक्ल में जोड़कर जब घुमाया जाता, तो यह तस्वीरें हरकत करती हुई नजर आती थीं। इसलिए इन्हे मोशन पिक्चर्स यानि हरकत करने वाली तस्वीरें भी कहा जाता था। मगर इन तस्वीरों को जमा करने के लिए कभी-कभार कई-कई कैमरे लगाने पड़ते थे या फिर तस्वीरों को निकालकर अलग-अलग जोड़ना पड़ता था।

अब Thomas Alva Edison ने ऐसा कैमरा बना लिया था। यह बिजली से चलता था और एक ही कैमरे में Cello Light की पट्टी पर तस्वीरें बनती जाती थीं। इस कैमरे को ‘Kinetograph’ का नाम दिया गया। इस कैमरे से ली गई तस्वीरों को वीडियो की शक्ल में चलाने के लिए एक डिवाइस ‘Kinetoscope’ बनाई गई। इस डिवाइस में तस्वीरों वाली Cello Light की पट्टी को रख दिया जाता, फिर यह डिवाइस इन तस्वीरों को वीडियो की शक्ल में प्ले कर देती। वीडियो देखने के लिए अंख को इस पर लगे छोटे से लेंस करीब ले जाना पड़ता था।

Thomas Alva Edison ने अपने Menlo Park वाली लेबोरेटरी से 21 मील दूर West Orange New Jersey में Black Maria के नाम से एक स्टूडियो भी बना लिया। यहाँ 1894 में बड़े पैमाने पर Video’s की रिकॉर्डिंग की गई।

एडिसन, Video’s या Motion Pictures को लोगों के लिए एक लग्जरी, एक एंटरटेनमेंट बनाना चाहता था। इसलिए उसने पूरे अमेरिका में Kinetoscope के Studios का जाल बिछा दिया। इन स्टूडियोज में एक व्यक्ति 25 सेंट देकर 1 Kinetoscope इस्तेमाल कर सकता था यानि इसमें वीडियो देख सकता था।

इस अविष्कार ने Thomas Alva Edison को फिर से अमेरिका में मक़बूल-ए-आम (प्रसिद्ध) कर दिया और इसके कारोबार को भी चार-चाँद लग गए। मगर अब यहाँ भी वही मसला पेश आ गया जो बिजली के मामले में सामने आया था। वो यह कि कैमरा, जिसे उसने बेहतर करके बेचना शुरू कर दिया था, वैसे ही उसका कैमरा और काइनेटोस्कोप भी उसके कॉम्पिटिटर बेहतर करने की कोशिशों में लगे हुए थे। जब कोई कोशिश करता है, तो फिर नतीजा तो आना ही होता है। तो यह एक ऐसी बात थी, जो एडिसन की कैमरा टीम ने भी समझ ली थी। इस टीम ने एडिसन को एक मशवरा दिया।

मशवरा यह था कि एक ऐसा प्रोजेक्टर बनाया जाय, जिससे बहुत से लोग एक ही वक्त में विडिओ देख सकें। मगर एडिसन की सोच इससे हटकर थी। वो सोच रहा था कि अभी लोग काइनेटोस्कोप में विडिओ देखने के लिए अलग-अलग पैसे देते हैं क्योंकि एक वक्त में एक व्यक्ति काइनेटोस्कोप के छोटे से लेंस से आँख लगाकर विडिओ देख सकता है, लेकिन अगर विडिओ बड़ी स्क्रीन पर चलने लगे, तो एक वक्त में बहुत से लोग उसे देखने लगेंगे और उसका मुनाफा कम हो जायेगा। इसलिए ज्यादा मुनाफे के लालच में उसने प्रोजेक्टर बनाने के आईडिया को रद्द कर दिया और यहीं एक बार फिर वो मार खा गया क्योंकि कुछ लोग इसी आईडिया पर काम कर रहे थे और जल्द ही ऐसी डिवाइसेस मार्केट में आने लगीं, जिन्होंने काइनेटोस्कोप का पैकप करवा दिया।

सबसे पहले तो 1895 में 2 फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने पेरिस में कपड़े की एक स्क्रीन पर प्रोजेक्टर से विडिओ दिखाकर तहलका मचा दिया था। इसके बाद अमेरिका में भी Phantoscope के नाम से एक Projector मार्केट में आ गया, जिसे आज पहली बाकायदा सिनेमा स्क्रीन समझा जाता है और इस प्रोजेक्टर के मुकाबले में Thomas Alva Edison के काइनेटोस्कोप की कोई अहमियत ना रही।

बिजली के बिजनेस में नाकामी के बाद अब यह दूर मौका था कि एडिसन का कारोबार तबाही के दहाने पर खड़ा था, लेकिन इस बार एडिसन होशियार था। उसे मालूम था कि बिजनेस में जिद नहीं, सौदेबाजी चलती है। इसलिए उसने भी सौदेबाजी कर ली। उसने Phantoscope के मालिक Thomas Armat से Phantoscope के राइट्स ही खरीद लिए। फिर उसने Phantoscope को बेहतर बनाकर Vitascope के नाम से एक ऐसी सिनेमा मशीन तैयार की जिसने बाकी सब कॉम्पिटिटर को मार्केट से निकाल बाहर किया।

Vitascope के बाद 1896 में Thomas Alva Edison ने Projectoscope के नाम से एक और सिनेमा मशीन बना डाली। दोस्तों, जिन सिनेमा मशीनों पर वर्षों तक अमरीकी सिनेमा इंडस्ट्री की रोजी-रोटी चलती रही है। वो एडिसन की सिनेमा मशीनों से सीखकर ही बनाई गई थी। यूँ, ही हॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री ने जन्म लिया। मोशन पिक्चर्स और गूंगी फिल्मों का टाकीज से पहले की फिल्मों का दौर शुरू हुआ।

टेक्नोलॉजी में यह इंकलाब एडिसन के बनाये गए विडिओ कैमरे और प्रोजेक्टर से ही मुमकिन हो पाया था। यानी हम कह सकते हैं कि अगर Thomas Alva Edison ना होता, तो हॉलीवुड और सिनेमा घरों की रौनक शायद किसी और तरह से वजूद में आती और हाँ, एडिसन के Black Maria Studio ने भी विडिओ बनाने का सिलसिला जारी रखा और 20 वर्ष में 1200 फिल्में तैयार हुईं।

एडिसन चूँकि आवाज और विडिओ दोनों की रिकॉर्डिंग डिवाइसेस बनाने में कामयाब हो चुका था। इसीलिए उसने एक ऐसी डिवाइस बनाने के लिए अब कोशिश शुरू कर दी, जिसमे विडिओ के साथ आवाज को भी सुना जा सके। यानी गूंगी फिल्मों को बोलती फिल्मों में बदलने की टेक्नोलॉजी। इसमें उसे कुछ कामयाबी भी मिली, लेकिन वो इसे ज्यादा बेहतर और कमर्शियल इस्तेमाल के काबिल ना बना सका। 1915 में यह प्रोजेक्ट खत्म कर दिया गया।

1920 की दहाई में कुछ दूसरे वैज्ञानिकों ने गूंगी फिल्मों की जगह बोलती फिल्में बनाने की बेहतर और काबिल-ए-इस्तेमाल टेक्नोलॉजी बना ली और मार्केट में ले आये, लेकिन Myqures fellows सिनेमा मशीन और विडिओ कैमरा ही एडिसन की आखिरी मंजिल नहीं थी। वो तो Sky is the Limit के मुताबिक चलता था।

मोशन पिक्चर यानि विडिओ मेकिंग में कामयाबी के बाद एडिसन ने और कई शोहबों (फील्ड्स) में भी कदम रख दिया। उसकी कायम (स्थापित) की हुई कपनियां पंखे, मोटर्स, ग्रामोफोन, बिजली का सामान, यहाँ तक कि मेडिकल के आलात (औजार) और प्लास्टिक की पैकिंग तक बनाती थी।

Thomas Alva Edison के हर प्रोडक्ट पर उसका नाम लिखा होता था और कंपनी के हर इश्तिहार (विज्ञापन) में यह दावा किया जाता था कि ‘एडिसन प्रोडक्ट्स’ से बेहतर कोई चीज नहीं। यूँ, एडिसन का नाम क्वालिटी की जमानत बन गया। वो अमेरिका में एक ब्रांड बन गया। 12 साल की उम्र से दौलतमंद और बिजनेसमैन बनने का जो सपना उसने देखा था, वो पूरा हो गया था।

अब वो बूढ़ा हो रहा था। ब-जाहिर (वास्तव में) उसे सब कुछ मिल चुका था, लेकिन जिस उम्र में लोग अपने खून-पसीने की कमाई में 1 पैसे का भी जाया (नुकसान) हो जाना बर्दाश्त नहीं करते। वहां एडिसन ने 5 मिलियन डॉलर्स (50 लाख डॉलर्स) अपनी आँखों के सामने जलते देखें, लेकिन वो टस से मस नहीं हुआ।

हुआ यह कि दिसम्बर 1914 में Thomas Alva Edison के West Orange, New Jersey वाले प्लांट में आग लग गई। देखते ही देखते 13 इमारतें जलकर राख हो गईं। एडिसन भी वहां मौजूद था और अपनी उम्र भर की कमाई अपनी आँखों के सामने जलता देख रहा था, लेकिन उसे ना दिल का दौरा पड़ा, ना कोई परेशानी हुई। उसने अपने बेटे चार्ल्स से कहा बेटा जाओ अपनी माँ और उसकी सब दोस्तों को लेकर आओ। आग का ऐसा नजारा, उन्हें फिर देखने को नहीं मिलेगा।

चार्ल्स ने अपने बाप की बात सुनकर शायद सोचा हो कि बुड्ढा सठिया गया है। बहकी-बहकी बातें कर रहा है। मगर यह बुड्ढा सठियाया नहीं था। वो तो कागज-कलम लेकर उन चीजों की लिस्ट बना रहा था, जो इसे अपने प्लांट को दुबारा तामीर यानि खड़ा करने के लिए चाहिए थीं। इसकी इस कार्यवाही को देखकर, वहां मौजूद एक रिपोर्टर को तजस्सुस (जिज्ञासा) हुई। उसने सोचा, जरा देखें तो सही यह आदमी अपना नुकसान देखकर अब क्या लिख रहा है? उसने एडिसन से इस बारे में पूछा, तो एडिसन के जबाव ने उसे हैरान कर दिया। एडिसन ने कहा मै 67 वर्ष का हूँ, मगर मै कल से एक नई बिगिनिंग करूँगा, एक नई शुरुआत करूँगा। यह बात सुनकर चार्ल्स की तरह शायद रिपोर्टर को भी एडिसन की दिमागी सेहत पर कुछ शक हुआ हो, लेकिन एडिसन मजाक बिलकुल भी नहीं कर रहा था।

जब फायर ब्रिगेड ने आग पर काबू पा लिया। प्लांट में होने वाले नुकसान का अंदाजा लगाया गया, तो यह 30 से 50 लाख डॉलर्स था। मगर एडिसन ने यह नुकसान की खबर भी अपनी हँसी-मजाक में उड़ा दिया। उसके पास अब भी इतनी दौलत थी कि वो यह प्लांट दुबारा खड़ा कर सकता था। हालाँकि एक बड़े नुकसान के बाद दुबारा इन्वेस्टमेंट करना दिल, गुर्दे का काम था, मगर एडिसन जानता था कि उसका नाम एक ब्रांड है। जैसे ही उसका प्लांट दुबारा काम शुरू करेगा, उसका मुनाफा वापस आ जायेगा और नुकसान पूरा हो जायेगा। इसलिए उसने प्लांट को दुबारा बनाया और कुछ ही दिनों में अपना नुकसान पूरा कर लिया।

Thomas Alva Edison, बुढ़ापे में भी जवानों की तरह काम करता था। उसे अपने प्लांट्स पर जाना और हर मामले में अपने वर्कर्स को गाइड करते रहना अच्छा लगता था। मगर बुढ़ापा कभी ना जाने के लिए आता है। कई बिमारियों को साथ लाता है। शो, एडिसन का हाजमा (Digestion System) खराब रहने लगा था। किडनी भी जवाब दे रही थी। परहेजी खाना खाते-खाते एक वक्त ऐसा आया कि उसने खाना ही छोड़ दिया। अब वो सिर्फ दूध पीता था और सिगार के कश लगा लिया करता था। बिमारियों ने जब उसे ज्यादा जिस्मानी (शारीरिक) मेहनत के काबिल ना छोड़ा, तो 1926 में वो अपना कारोबार अपने बेटे चार्ल्स को सौंप कर रिटायर हो गया। अब वो ज्यादातर अपने दोस्त हेनरी फोर्ड के साथ दिखाई देता था।

Henry Ford, पहले Edison की ही एक कंपनी में इंजीनियर था और इसी दौरान उसकी एडिसन से दोस्ती भी हो गई थी। इसके बाद Henry ने Ford Company के नाम से कारें बनाने का बिजनेस शुरू कर दिया।

कहते हैं कि एडिसन ने बिजली से चलने वाली कारें यानि Electric Car’s भी बनाई थी और Henry Ford भी इलेक्ट्रिक कारें बनाने के लिए एडिसन से 1 लाख बैटरीज खरीदने वाला था। मगर किसी वजह से यह डील फाइनल ना हो सकी। इस नाकाम डील के बाद भी दोनों की दोस्ती में फर्क नहीं आया। इन दोनों ने अपने कुछ और दोस्तों के साथ मिलकर मिलकर एक ग्रुप बना लिया था, जिसे Vagabond यानि आवारागर्द कहते थे। यह लोग इकट्ठे सैर सपाटे और पार्टियां करते थे।

Thomas Alva Edison, अमरीकियों में एक तरह की सिलेब्रिटी एक लिविंग लीजेंड बन चुका था। उसे अपने दौर का सबसे बड़ा इन्वेंटर माना जाता था और उसका शुमार (गिनती) अमेरिका के सबसे बड़े कारोबारी लोगों में होती थी। आधुनिक अमेरिका, उसी की बनाई हुई टेक्नोलॉजीज पर चल रहा था। इसलिए लोग उसके दीवाने थे।

शायद ही दुनिया में किसी वैज्ञानिक को अपनी जिंदगी में इतनी इज्जत, इतनी शोहरत और इतनी दौलत मिली हो, जितनी एडिसन को मिली। आलिशान तकरीबात उसके एजाज में मुनक्कित ( अत्यधिक शानदार बातें उसकी प्रशंसा) में कही जाती। लोग उससे फरमाइश (अनुरोध) करके Mary had a little lamb सुनते। यह वही नज्म (कविता) थी, जो उसने अपने पहले अविष्कार फोनोग्राफ पर रिकॉर्ड कर ली थी।

प्रेस, इससे जुड़ी हर बात और हर घटना को बड़ी-बड़ी हेडलाइंस में छापा करता था। मगर वक्त के साथ एडिसन की बीमारियां बढ़ती जा रही थीं। 1931 में जब एडिसन West Orange, New Jersey में रह रहा था, तो वहां उसकी तबियत बहुत बिगड़ गई और वो बिस्तर से लग गया। प्रेस रिपोर्टर्स ने West Orange County में उसके घर के बाहर डेरे लगा दिए।

Thomas Alva Edison, धीरे-धीरे मौत की तरफ बढ़ रहा था और उसकी हालत में मामूली सी तब्दीली की खबरें भी अमेरिकी अखबारों में सुर्खियां बनती थीं। आखिर 18 अक्टूबर 1931 को 84 वर्ष की उम्र में एडिसन की मौत हो गई। उसका ताबूत 2 रोज तक उसकी लेबोरेटरी में रखा रहा, जहाँ 50 हजार से भी ज्यादा लोगों ने उसको आखिरी बार देखा।

Herbert Clark Hoover President of America
Herbert Clark Hoover President of America

तीसरी रात अमेरिकी राष्ट्रपति “Herbert Clark Hoover” ने लोगों से रेडियो पर दरखास्त (प्राथना) की कि वो Thomas Alva Edison की याद में अपने घरों की बिजली 1 मिनट के लिए बंद कर दें। इसलिए पूरे अमेरिका में एक ही वक्त में लाइट्स बंद हो गई। यह इस बात का इजहार था कि अगर एडिसन ना होता, तो अमेरिका कैसा दिखाई देगा?

Thomas Alva Edison तो New Jersey में ही अपने घर के पास दफन कर दिया गया। एडिसन के नाम पर 1093 इन्वेंशन (अविष्कार) रजिस्टर्ड हैं। अमेरिका में उसकी यादें और मुजस्सम-ए-(स्टैचू) बनाये गए। उसके नाम पर अवार्ड्स दिए गए। बहुत से इंस्टीटूट्स उसके नाम पर बने। उससे वा-बस्ता (जुड़ी) हुई इमारतों को महफूज (सुरक्षित) करके विरासत स्थल (Historic site) का दर्जा दिया गया।

दोस्तों, क्या आपके जेहन (दिमाग) में कोई ऐसा ख्याल (विचार) आया है, जो किसी पहले से मौजूद टेक्नोलॉजी को बिलकुल नई शक्ल दे दे? यकीनन (Of Course) आया होगा। हमे कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताएं। TAKE CARE.

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