Transistor Kya Hai?

हेलो फ्रेंड्स, हम फिर से Transistor के बारे में एक नया आर्टिकल लेकर आये हैं। क्या आपको पता हैं कि Transistor क्या होता है? अगर नहीं, तो इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें, और आपको ट्रांजिस्टर के बारे में सारी जानकारी मिल जाएगी। तो चलिए शुरू करते हैं, लेकिन उससे पहले आप सभी का बहुत-बहुत स्वागत है।

#1. Transistor क्या है?

ये दिखने में बहुत ही छोटा और साधारण सा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस होता है, लेकिन इसका उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसके कारण हम कंप्यूटर और मोबाइल में इतनी तेजी से काम कर पाते हैं। Transistor के बिना किसी भी Electronic Circuit को बनाना समभाव नहीं है। सबसे ज्यादा इसका यूज एम्पलीफिकेशन (विस्तारण) के लिए किया जाता है।

Transistor एक ऐसा अर्ध चालक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है, जिसका यूज इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल्स और इलेक्ट्रिसिटी को एम्पलीफायर करने के लिए किया जाता है। ट्रांजिस्टर अर्ध चालक पदार्थ से मिलकर बनता है। इसे बनाने के लिए ज्यादातर Siliconऔर Germanium का प्रयोग किया जाता है। इसमें 3 सिरे या टर्मिनल होते हैं, जिनका इस्तेमाल दूसरे सर्किट से जोड़ने में किया जाता है। ट्रांजिस्टर के 3 बेस होते हैं टर्मिनल होते हैं।

  • Base
  • Collector
  • Ammeter

ट्रांजिस्टर, टर्मिनल के किसी पेअर में करंट या बोल्टेज डालने पर, दूसरे ट्रांजिस्टर की जोड़ी में करंट बदल जाता है। बहुत सारे डिवाइसेस में Transistor का उपयोग किया जाता है जैसे – Amplifier, Switch Circuit, Oscillators इत्यादि।

#2. ट्रांजिस्टर कितने प्रकार के होते हैं?

ट्रांजिस्टर 2 प्रकार के होते हैं N – P – N, Transistor और P – N – P, Transistor तो चलिए इसके बारे में बारी-बारी से जानते हैं।

1. N – P – N Transistor

NPN Transistorदोस्तों, इसमें P टाइप की मेटल परत को 2, N टाइप की परतों के बीच में लगाया जाता है, यानी किसी Transistor का P सिरा बीच में है तो वह N – P – N Transistor कहलाता है। इसमें इलेक्ट्रान बेस टर्मिनल के द्वारा कलेक्टर से एम्मेटर की तरफ बहते हैं। N – P – N, Transistor में 2, N एरियाज होते हैं जिनको 1 पतले से P एरिया से विभाजित किया जाता है।

N – P – N, Transistor कमजोर सिग्नल को एम्पलीफायर करके बेस की तरफ भेजता है और यह मजबूत एम्पलीफायर सिग्नल्स को कलेक्टर छोर पर बनाता है। एनपीएन ट्रांजिस्टर में इलेक्ट्रान के गति करने की दिशा एम्मेटर से कलेक्टर के क्षेत्र तक ही सीमित होती है, जिस कारण से ट्रांजिस्टर में करंट उत्त्पन्न होता है।

इस तरह के ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल सर्किट में किया जाता है क्योंकि इसमें मेजोरिटी चार्ज इलेक्ट्रॉन्स होते हैं और माइनॉरिटी चार्ज होल्स होते हैं। दोनों जंक्शन में P कॉमन हो जाता है। इसीलिए इसे N – P – N, Transistor कहते हैं। इसमें P बेस होता है और छोटा N एम्मेटर और दूसरा बड़ा N कलेक्टर होता है। इसमें करंट, कलेक्टर से एम्मेटर की ओर बहता है।

आपको यह भी बता दें कि इसमें बेस एक कंट्रोलर की तरह काम करता है और बेस पर जितने सिग्नल्स दिए जाते हैं, उसके अनुसार करंट कलेक्टर से एम्मेटर की ओर बहने लगता है। इसे अच्छी तरह समझने के लिए एक उदहारण लेते हैं।

आपने घर,स्कूल या ऑफिस हर जगह पर पानी का नल देखा होगा, जिसके लिए ऊपर छत पर टंकी रखी होती है और पाइप से पानी को नीचे लाया जाता है, जिसमे से पानी बहता है और बहता ही रहेगा। अगर उसको रोकने के वॉल्व अर्थात टोंटी ना लगी हो, जिसको बंद कर देने पर पानी नहीं बहता।

जब आपको जरुरत होती है, तब टोंटी को खोल कर पानी ले लेते हैं, फिर जरुरत नहीं होने पर बंद कर देते हैं। साथ ही आपको कम पानी चाहिए तो कम खोलते हैं और ज्यादा तेजी से पानी बहने के लिए ज्यादा या पूरा खोल देते हैं।

कहने का अर्थ यह है कि जितनी हमे जरुरत होती है और जिस गति से हम चाहते हैं, टोंटी को उसी के अनुसार घुमा कर पानी ले लेते हैं। ठीक इसी प्रकार Transistor भी काम करता है और बेस उसको कंट्रोल करता है। मुझे लगता है कि आपको अच्छे से समझ में आ गया होगा।

2. P – N – P, Transistor

PNP Transistor
PNP Transistor

P – N – P, Transistor में 2, P एरियाज होते हैं, जिनको 1 पतले से N एरिया से विभाजित किया जाता है। इस ट्रांसिस्टर में बेस से निकला कम अमाउंट का करंट एम्मेटर और कलेक्टर करंट को कंट्रोल करने का काम करता है।

पीएनपी ट्रांसिस्टर में 2 क्रिस्टल डायोड होते हैं जोकि एक के पीछे एक कनेक्ट होते हैं। बाईं तरफ के बायें डायोड को एम्मेटर बेस डायोड कहा जाता है और दाईं तरफ के डायोड को कलेक्टर बेस डायोड कहा जाता है।

3. Field – Effect Transistor 

Field – Effect Transistor (FET), ट्रांजिस्टर का दूसरा टाइप है और इसमें भी 3 सिरे होते हैं।

  • Gate
  • Drain
  • Source

यह ट्रांजिस्टर आगे भी बनता गया है जैसे – Junction Field Effect Transistors (JEFT) और MOSFET Transistor. इसका उपयोग Multiplexer में भी किया जाता है। फील्ड इफ़ेक्ट ट्रांजिस्टर 2 प्रकार के होते हैं।

1. Junction Field – Effect Transistor

यह एक सेमी कंडक्टर उपकरण है, जिसके 3 टर्मिनल होते हैं और इन्हे Electronic control switch, Voltage control register और Amplifier में इस्तेमाल किया जाता है। यह एक Unipolar उपकरण है। इसका मतलब है कि यह एक समय में इलेक्ट्रान या होल्स पर निर्भर करेगा। इसके छोटे साइज के कारण ही ट्रांजिस्टर सर्किट में काफी कम जगह में ही फिट हो जाता है। यह ट्रांजिस्टर Radiation से भी बचाने का काम करता है।

2. Metal Oxide Field – Effect Transistor

यह एक सेमी कंडक्टर डिवाइस है, जिसका उपयोग Electronic Devices को स्विचिंग और Electronic Signals को एम्पलीफायर करने के लिए किया जाता है। मेटल ऑक्साइड फील्ड इफ़ेक्ट ट्रांजिस्टर का उपयोग High Frequency Amplifier की तरह किया जाता है। इसका इस्तेमाल स्विच, मेन पावर सप्लाई में किया जाता है।

4. Darlington Transistor

इसे कभी-कभी डार्लिंगटन जोड़ी भी कहा जाता है। यह एक ट्रांजिस्टर सर्किट होता है, जिसे दो ट्रांजिस्टर से बनाया जाता है। “सिडनी डार्लिंगटन” ने इसका आविष्कार किया था। यह एक ट्रांजिस्टर की तरह है, लेकिन इसमें करंट प्राप्त करने की छमता बहुत अधिक है।

चलिए आपको बताते चलें कि सर्किट 2 ट्रांजिस्टर से बनाया जा सकता है या यह एक-एक सर्किट के अंदर हो सकता है। Darlington Transistor के साथ HEF पैरा मीटर ट्रांजिस्टर HEF को एक दूसरे के साथ गुणा किया जाता है।

सर्किट ऑडियो एम्पलीफायर में या एक जांच में सहायक है, जो पानी के माध्यम से जाने वाले बहुत छोटे प्रवाह को मापता है। यह इतना सेंसिटिव होता है कि यह Skin में Current उठा सकता है। यदि आप इसे मेटल के टुकड़े से जोड़ते हैं तो आप एक स्पर्श संवेदनशील बटन बना सकते हैं।

5. Schottky Transistor 

शॉटकी ट्रांजिस्टर- ट्रांजिस्टर और शॉटकी डायोड का संयोजन है, जो चरम इनपुट वर्धमान को डाइवर्ट करके ट्रांजिस्टर को संतृप्त होने से रोकता है। इसे Schottky-clamped Transistor भी कहा जाता है।

6. Multiple – Emitter – Transistor 

यह एक द्विध्रुवी ट्रांजिस्टर है, जिसे अक्सर Transistor-Transistor Logic (TTL), Nanda Logic Input Gates के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इनपुट सिग्नल, एमिटर पर लगाए जाते हैं। यदि सभी उत्सर्जन तार्किक उच्च बोल्टेज द्वारा संचालित होते हैं तो कलेक्टर वर्तमान प्रवाह बंद हो जाता है।

इस प्रकार एक एकल ट्रांजिस्टर का उपयोग करके एक NAND तार्किक प्रक्रिया का प्रदर्शन होता है। इसमें Multiple – Emitter – Transistor, DTL के डायोड की जगह लेते हैं और स्विचिंग समय और बिजली अपव्यय को कम करने के लिए सहमत होते हैं।

BJT एक तीन-लीड डिवाइस है, जिसमे Ammeter एक Collector और एक Base lead होता है। BJT एक वर्तमान संचालित उपकरण है। BJT के भीतर 2 PN जंक्शन मौजूद हैं। PN जंक्शन एम्मेटरऔर बेस क्षेत्र के बीच मौजूद है। दूसरा कलेक्टर और बेस एक क्षेत्र के बीच मौजूद है।

वर्तमान प्रवाह एम्मेटर 2 बेस माइक्रो एम्प के आधार पर मापा जाता है कि थोड़ी सी मात्रा डिवाइस से एम्मेटर से कलेक्टर मिलीमीटर में मापा जाने वाला कलेक्टर वर्तमान के माध्यम से काफी बड़े प्रवाह को नियंत्रित कर सकती है।

7. Bipolar Transistor

इसके ध्रुवों के सम्बन्ध में मानार्थ प्रकृति में उपलब्ध है। N – P – N में N टाइप सेमी कंडक्टर सामग्री का 1 एम्मेटर और कलेक्टर है और आधार सामग्री P टाइप सेमी कंडक्टर सामग्री है। P- N – P में यह ध्रुविताएं बस यहाँ उलट जाती है। एम्मेटर और कलेक्टर P टाइप अर्ध चालक सामग्री है और आधार N टाइप सामग्री है।

N – P – N और P – N – P Transistor के कार्य अनिवार्य रूप से समान हैं, लेकिन प्रत्येक प्रकार के लिए बिजली की आपूर्ति ध्रुविता उलट जाती है। इन दोनों प्रकार के बीच एक मात्र बड़ा अंतर यह है कि यह N – P – N, Transistor में P – N – P, Transistor की तुलना में उच्च आवर्त की प्रक्रिया होती है क्योंकि इलेक्ट्रान का प्रवाह क्षेत्र प्रवाह से तीव्र होता है।

सामान्य BJT ऑपरेशन में बेस एम्मेटर जक्शन फोरवोर्ड बायस्ड हैं और बेस कलेक्टर जंक्शन रिवर्स बायस्ड हैं। जब बेस एम्मेटर जंक्शन से करंट प्रभावित होता है तो कलेक्टर सर्किट में भी करंट प्रभावित होता है।

यह बेस सर्किट में एक बड़ा और आनुवादिक है। ऐसा होने के तरीके को समझने के लिए N – P – N, Transistor का उदाहरण लिया जाता है। सामान्य सिद्धांतों का उपयोग P – N – P, Transistor के लिए किया जाता है। सिवाय इसके कि वर्तमान वाहक के एलेक्ट्रानों की वजह छेद है और बोल्टेज उल्टा है।

#3. ट्रांजिस्टर का अविष्कार किसने किया था?

जर्मनी के भौतिक विज्ञानी “Julius Edgar Lilienfeld” ने कनाडा में पेटेंट के लिए 1925 में Field-Effect Transistor (FET) के लिए प्रार्थना पत्र दिया था, लेकिन सबूतों की कमी के कारण इसको स्वीकार्य नहीं किया गया, लेकिन बाद में ट्रांजिस्टर का आविष्कार “John Bardeen, Walter Brattain and William Shockley” ने सन 1947 में किया था।

ट्रांजिस्टर सस्ते होते हैं, इसीलिए इसे कहीं भी यूज किया जा सकता हैं। यह बहुत तेजी से कार्य करते हैं। केथोड हीटर के द्वारा पावर का लॉस नहीं होता और इनकी लम्बी लाइफ होती है और जल्दी ख़राब भी नहीं होते।

ट्रांजिस्टर का उपयोग एक स्विच की तरह होता है और यह एम्पलीफायर के रूप में होता है। ट्रांजिस्टर के अधिकांश सामान्य अनुपयोग में एनालॉग और डिजिटल स्विच, पावर रेगुलेटर, मल्टी वाइब्रेटर, वेरियस सिग्नल जेनेटर्स, सिग्नल एम्पलीफायर्स और डिवाइस कंट्रोलर शामिल होते हैं।

ट्रांजिस्टर एकीकृत सर्किट के बुनियादी भवन ब्लॉक हैं और ज्यादातर Up To Dates Electronics हैं। ट्रांजिस्टर का एक प्रमुख अनुउपयोग माइक्रो प्रोसेसरों में से एक चिप में 1 Billion से ज्यादा Transistor शामिल होते हैं।

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#4. Conclusion

अलीबाबा को उम्मीद है कि आपको है कि इस आर्टिकल के जरिये Transistor से जुड़ी सभी महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिल गई होंगी। मेरी हमेशा से यही कोशिश रहती है कि हमारे आर्टिकल्स के जरिये आपको दिए गए विषय पर पूरी जानकारी प्राप्त हो सके, ताकि आपको कहीं और जाना ना पड़े।

इस जानकारी के बारे में आपकी क्या राय है? ये जानकारी आपको कैसी लगी? कमेंट सेक्शन में लिखकर अपनी राय का इजहार जरूर करें। जानकारी अच्छी लगी हो तो इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शेयर करना बिलकुल भी ना भूलें, शुक्रिया। Google

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