Martin Luther King, Jr Kaun Tha?

पहली बार तो वो तब रोया था, जब इसके एक श्वेत दोस्त को इससे मिलने से मना कर दिया गया। फिर इसका दिल तब दुखा जब एक जूते की दुकान के श्वेत मालिक ने दुकान खाली होने के बावजूद इसे खरीदारी के लिए इंतिजार कराया। फिर इसे तीसरा धचका लगा, जब इसे बस की अगली सीट पर बैठने से मना कर दिया गया क्योंकि वहां सिर्फ श्वेत बैठ सकते थे। इन नाइंसाफी पर इसका दिल खून के आँसू रोया। मगर फिर इसने एक सपना देखा। एक ऐसा सपना जिसे साकार करने के लिए इसे अपनी जान देना पड़ी। आज के इस आर्टिकल में हम आपको इसी अफ्रीकी अमेरिकी अश्वेतों के हीरो Martin Luther King, Jr की बायोग्राफी बता रहे हैं।

Martin Luther King, Jr कौन था? | मार्टिन लूथर किंग, जूनियर का शानदार जीवन परिचय

नाम डॉ॰ मार्टिन लूथर किंग, जूनियर
जन्म 15 जनवरी 1929, अटलांटा, जॉर्जिया, संयुक्त राज्य अमेरिका
मृत्यु 4 अप्रैल 1968, मेम्फिस, टेनेसी, संयुक्त राज्य अमेरिका
जीवन संगिनी कोरेटा स्कॉट किंग (एम। 1953-1968)
बच्चे  मार्टिन लूथर किंग III, योलान्डा किंग, डेक्सटर किंग, बर्निस किंग
शिक्षा बोस्टन विश्वविद्यालय (1951-1955),
पुरस्कार  नोबेल शांति पुरस्कार, ग्रैमी हॉल ऑफ फ़ेम,

01 दिसंबर 1955 को अमेरिकी राज्य अलबामा की राजधानी “मोंटगोमेरी” में एक अश्वेत महिला ‘रोज़ा पार्क्स’ एक बस में सवार हुई। कुछ देर बाद बस में एक श्वेत आया तो ड्राइवर ने रोजा से कहा इसके लिए सीट खाली कर दो। रोजा ने इनकार कर दिया। इस पर ड्राइवर ने रोजा को पुलिस के हवाले कर दिया। मगर इस घटना ने शहर के अश्वेत लीडर्स को अहसास कराया कि अब इन्हे डरना नहीं, बल्कि अपने अधिकार के लिए लड़ना होगा। इन लीडर्स में जार्जिया से संबंध रखने वाला एक चार्च एम्प्लॉई Martin Luther King, Jr भी शामिल था।

जो नाइंसाफी रोजा पार्क्स के साथ हुई थी, इसका मार्टिन भी अतीत में कई बार सामना कर चुका था। इसने अश्वेतों से अपील की कि वो बसों का बायकॉट कर दें। अश्वेतों ने ऐसा ही किया और बसों में बैठने के बजाय पैदल सफर करने लगे। मार्टिन को इस बॉयकॉट की वजह से गिरफ्तार भी किया गया, लेकिन इसने अपना प्रयत्न; संघर्ष नहीं छोड़ा। यह बॉयकॉट एक साल चला। मगर इसने ट्रांसपोर्टर्स का दिवाला निकाल दिया और उन्होंने हार मान ली। वो इस बात पर तैयार हो गए कि अब कोई श्वेत किसी अश्वेत को बस की सीट से नहीं उठाएगा। ट्रांसपोर्टर्स के इस कमिटमेंट के बाद बॉयकॉट खत्म हो गया। मार्टिन के पास अपनी कार थी। मगर अश्वेतों की जीत की निशानी के तौर पर वो भी एक बस में सवार हुआ।

Martin Luther King Junior ने रूढ़िवाद के विरुद्ध पहली लड़ाई जीत ली थी। यह लड़ाई इसने “महात्मा गांधी के सिद्धांत यानि शांतिपूर्ण आंदोलन की बुनियाद पर लड़ी थी”. वो “महात्मा गांधी” को अपना रोल मॉडल समझता था।

मोंटगोमेरी में ट्रांसपोर्ट के संघर्ष पर सफलता पाने के बाद मार्टिन ने एक सिविल राइट्स ग्रुप बना लिया। जिसे Southern Christian Leadership Conference (SCLC) कहते थे। इसी ग्रुप के प्लेटफॉर्म से Martin Luther King, Jr ने अश्वेतों के अधिकार के लिए एक ना खत्म होने वाला संघर्ष शुरू किया। इस संघर्ष में इसे कई अमेरिकी शहरों में जाना पड़ा। जहाँ हर शहर में एक नया चैलेंज इसके इंतिजार की राह देख रहा था।

वासिंगटन डीसी में वाइट हाउस के पास लिंकन मेमोरियल है, जिसमे अब्राहम लिंकन की एक विशालकाय मूर्ति को (कुर्सी पर बैठे) दिखाया गया है। 17 मई 1957 को इसी मूर्ति के सामने Martin Luther King ने हजारों लोगों से संवाद किया। मार्टिन ने उस वक्त के अमेरिकी प्रेसिडेंट “Dwight D. Eisenhower” से मांग की, कि वो अश्वेतों को समान अधिकार दिलाने के लिए अपनी भूमिका निभाएं।

Dwight D. Eisenhower ने तो Martin Luther King की मांग पर कान नहीं धरे। मगर मार्टिन ने अपना संघर्ष नहीं छोड़ा। वो अश्वेतों के अधिकार के लिए आवाज उठाता रहा। 1959 में इसने मोंटगोमेरी छोड़ा और जार्जिया में अपने पुश्तैनी शहर अटलांटा चला गया। इसके सिविल राइट्स संगठन (SCLC) का हेड क्वार्टर भी यही शहर था। अटलांटा में मार्टिन एक छात्र संगठन में शामिल हो गया।

हुआ यह कि अश्वेतों और इनसे हमदर्दी रखने वाले श्वेत छात्रों ने एक मुहिम शुरू की थी। यह लोग डिपार्टमेंटल स्टोर में जाते और लंच टाइम में उन काउंटर्स पर बैठ जाते जो सिर्फ श्वेतों के लिए फिक्स थे। मकसद यह दिखाना था कि श्वेतों के लिए अलग काउंटर्स बनाना गलत है। यह मुहिम अमेरिका के कई शहरों में चल रही थी, लेकिन पुलिस ने इन छात्रों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया।

19 अक्टूबर 1960 को Martin Luther King भी डिपार्टमेंटल स्टोर से गिरफ्तार हो गया। जब इसे जज के सामने पेश किया गया, तो इसने कहा “यह विरोध नस्लीय भेदभाव की तरफ ध्यान दिलाने के लिए है”।

Martin Luther King ५ दिन बाद जेल से तो बाहर आ गया। मगर 04 मई को पुलिस ने इसे गलत लाइसेंस पर गाड़ी चलाने के बहाने गिरफ्तार कर लिया। इसके पैरों को जंजीरों से बांधकर 200 मील दूर एक कैदखाने में भेज दिया गया। इसके समर्थकों को लगा कि अब मार्टिन का जेल से बाहर निकलना मुश्किल है। मगर मार्टिन की खुश किस्मती कि उन दिनों अमेरिका में इलेक्शन हो रहे थे। मार्टिन के समर्थकों ने प्रेसिडेंट पद के दोनों उम्मीदवारों “Richard Nixon और John F. Kennedy से मदद की अपीलें कीं। “John F. Kennedy” Martin Luther King की मदद करने के लिए तैयार हो गया।

“John F. Kennedy” का भाई Robert F. Kennedy लॉयर था। इसने जज को फोन करके मार्टिन को जमानत पर रिहा करवा लिया। मार्टिन की रिहाई की वजह से अश्वेतों का बहुमत “John F. Kennedy” का समर्थक बन गया और इलेक्शन में इसे वोट भी दिया।

उधर मार्टिन ने रिहा होते ही लंच काउंटर वाला विरोध फिर से शुरू कर दिया था। आखिरकार अमेरिका में कई जगहों पर अश्वेतों और श्वेतों के लिए अलग-अलग काउंटर्स खत्म कर दिए गए। मार्टिन ने अश्वेतों के अधिकार की एक और लड़ाई शांतिपूर्ण तरीके से जीत ली थी।

अब Martin Luther King ने अपनी पहल को आगे बढ़ाने के लिए एक ऐसे शहर का चुनाव किया। जहाँ की पुलिस अश्वेतों को कुचलने के लिए हर-हद तक जाने को तैयार थी। फिर मुकाबला शुरू हो गया। राज्य ‘अलबामा’ के इलाके बर्मिंघम का पुलिस कमिशनर “Bull” Connor था। यह व्यक्ति अपनी नस्ल-परस्ती (रूढ़िवाद) के लिए बदनाम था। वह प्रदर्शनकारियों को खुलेआम धमकियाँ भी देता था।

जब मार्टिन ने इस शहर में आंदोलन शुरू किया तो “Bull” Connor के आदेश पर पुलिस प्रदर्शनकारियों पर टूट पड़ी। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज भी किया और इन्हे डराने के लिए कुत्तों का इस्तेमाल भी किया। महिलाओं समेत 500 लोग जेल भेज दिए गए।

06 अप्रैल को सिटी हॉल की तरफ मार्च करने वालों पर भी कुत्ते छोड़े गए। फिर एक प्रदर्शन के दौरान मार्टिन भी बुल कार्नर की गिरफ्त में आ गया। इसने मार्टिन को गिरफ्तार किया और जेल की काल-कोठरी में कैद कर दिया। यहाँ एक छोटी सी खिड़की के अलावा रौशनी अंदर आने का कोई रास्ता नहीं था। इस काल-कोठरी में मार्टिन एक सप्ताह कैद रहा। इस दौरान इसने जेल में बैठकर अपने समर्थकों के लिए एक पत्र लिखा। इसके पास कागज नहीं थे। इसलिए वो टॉयलेट पेपर्स और अखबारों के खाली हिस्सों पर लिखता रहा। इसने लिखा “लोगों को अन्यायपूर्ण कानूनों की अवहेलना करना चाहिए, लेकिन कानून की अवहेलना पर सजा भुगतने के लिए भी तैयार रहना चाहिए”।

जिस सेल में मार्टिन को कैद किया गया था। इसे दुबारा तामीर करके सुरक्षित कर लिया गया है। मार्टिन तो एक सप्ताह बाद जेल से बाहर आ गया। मगर पुलिस का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। एक मौके पर तो पुलिस ने प्रदर्शन करने वाले बच्चों से पोस्टर्स छीन लिए। फिर 6 साल उम्र तक के बच्चों को भी जेल में डाल दिया गया।

02 मई को आंदोलन में एक निर्णायक मोड़ आया, जब पूरा शहर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच मैदान-ए-जंग बन गया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर सिर्फ डंडे नहीं बरसाए, बल्कि पानी के बड़े-बड़े पाइप से वाटर गन की तरह पानी की बौछार कर दी। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर कुत्ते भी छोड़ दिए, जो प्रदर्शनकारियों के कपड़े नोचते रहे।

पुलिस से झड़पों के बाद यह प्रदर्शन तो खत्म हो गया। मगर शहर के अश्वेत दुकानदारों का सब्र जवाब दे गया। अश्वेतों ने इनकी दुकानों का बॉयकॉट कर रखा था, जिसकी वजह से इनके कारोबार ठप हो रहे थे। इन्होंने अश्वेतों के साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार बंद करने का वादा कर लिया था।

यूँ पुलिस के बुरे व्यवहार के बावजूद Martin Luther King शांतिपूर्ण आंदोलन के जरिये बर्मिंघम में सफल रहा था, लेकिन बर्मिंघम के साथ-साथ मार्टिन एक और छात्र आन्दोलन में भी शामिल हो चुका था। यह छात्र खुद को फ्रीडम राइडर्स कहते थे। ये लोग बसों में सफर करते और हर स्टॉप पर श्वेतों के लिए अलॉट विशेष वेटिंग रूम में बतौर प्रोटेस्टर बैठ जाते। श्वेतों ने इन पर आक्रमण किया। इनकी बसें जला दी गईं और कातिलाना हमले हुए। मगर छात्रों ने हार नहीं मानी। मार्टिन ने भी इन छात्रों का साथ दिया।

एक रात जब मार्टिन मोंटगोमेरी के एक चर्च में फ्रीडम राइडर्स की एक मीटिंग में शामिल था, तो उस पर हमला हो गया। श्वेतों की भारी भीड़ चर्च के बाहर जमा हो गई और पत्थर और बोतलें फेंकने लगे। मगर मार्टिन और उसके साथी अशांत नहीं हुए। वो पूरी तरह शांत रहे और एक साथ मिलकर एक गाना गाते रहे “हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब”। आखिरकार भीड़ कुछ देर बाद खुद ही थक कर वापस चली गई। अब अश्वेतों का आंदोलन पूरे अमेरिका में फैल चुका था। फिर इस आंदोलन को वो सफलता मिली, जिसका इन्हे वर्षों से इंतिजार था।

11 जून 1963 को प्रेसिडेंट “जॉन एफ॰ केनेडी” ने कांग्रेस से कहा कि वो अश्वेतों के विरुद्ध अत्याचार खत्म करने के लिए सिविल राइट्स या नागरिक कानून का बिल पास करे। यह अश्वेतों की बड़ी जीत थी। Martin Luther King ने इस बिल के समर्थन में वाशिंगटन डीसी में एक बड़ी सभा को संबोधित किया और यहीं इसने अपना सपना बयान किया।

28 अगस्त 1963 का दिन वाशिंगटन में लिंकन मेमोरियल के सामने ढाई लाख अमेरिकियों का समन्दर मौजूद था। मार्टिन ने अपना भाषण शुरू किया, लेकिन इसे पूरा ना कर सका। अचानक भीड़ से अमेरिकी सिंगर और मार्टिन की करीबी साथी “Mahalia Jackson” की आवाज गूँजी। इसने कहा लोगों को अपने सपने के बारे में बताओ।

Mahalia Jackson को यह विचार क्यों आया था? मगर Martin Luther King ने यह शब्द सुनते ही अपने भाषण को अधूरा छोड़ दिया। वो बोला “मेरा एक सपना है कि एक दिन जार्जिया के लाल पहाड़ों पर पूर्व गुलामों के बच्चे और पूर्व मालिकों के बच्चे इकठ्ठा होंगे और इनमे आपसी भाईचारा होगा”। “एक दिन लोग मेरे चारों और छोटे बच्चों को इनके रंग-रूप से नहीं, बल्कि इनके आचरण से पहचानेंगे”। Martin Luther King के यह शब्द तारीख में अमर हो गए और इसका सपना हर उस अश्वेत का सपना बन गया, जो नाइंसाफी से छुटकारा पाना चाहता था। इसी दिन मार्टिन और इसके साथी वाइट हाउस गए और अमेरिकी प्रेसिडेंट “जॉन एफ॰ केनेडी” से भी मिले, लेकिन अश्वेतों को बराबरी का अधिकार दिलाने से पहले ही इस दौरान एक ट्रेजडी भी हो गई।

22 नवंबर 1963 को अमेरिकी प्रेसिडेंट “जॉन एफ॰ केनेडी” की हत्या कर दी गई, लेकिन अश्वेतों के बराबरी के अधिकार का जो बिल केनेडी पास करवाना चाहता था। वो इसके उत्तराधिकारी “Lyndon B. Johnson” ने पास कराया।

02 जुलाई 1964 का दिन अमेरिकी अश्वेतों की तारीख का एक और यादगार दिन है। इस दिन अमेरिकी प्रेसिडेंट “Lyndon B. Johnson” ने कांग्रेस से पास हुए नागरिक कानून बिल पर हस्ताक्षर कर दिया था। बिल पर हस्ताक्षर के शुभ अवसर पर Martin Luther King को विशेष रूप से इनविटेशन भेजकर “वाइट हाउस” बुलाया गया था। जब जॉनसन बिल पर हस्ताक्षर कर रहा था, तो Martin Luther King इसके साथ खड़ा था। मार्टिन ने शांतिपूर्ण तरीके से अश्वेतों के अधिकार की यह लड़ाई जीत ली थी। वो वजह के तौर पर नोबेल प्राइज का हकदार था और यह प्राइज इसे मिल भी गया।

सिविल राइट्स बिल पास होने के चंद माह बाद अक्टूबर में मार्टिन को शांति का नोबेल प्राइज दिया गया। नोबेल प्राइज के साथ इसे $54,000 की इनामी रकम भी मिली, जो इसने सिविल राइट ग्रुप्स को दान कर दिया। लेकिन, सिविल राइट्स बिल पास होने के बाद भी Martin Luther King का संघर्ष खत्म नहीं हुआ, बल्कि इसने एक नया मोड़ ले लिया।

मार्च 1965 में मार्टिन ने अश्वेतों को वोट का अधिकार दिलाने के लिए 25,000 लोगों के साथ अलबामा की राजधानी “मोंटगोमेरी” की तरफ मार्च किया। इस मार्च की वजह से 06 अगस्त 1965 को प्रेसिडेंट जॉनसन ने वोटिंग राइट्स एक्ट पर भी हस्ताक्षर कर दिया। इस एक्ट पर हस्ताक्षर के शुभ अवसर पर भी Martin Luther King मौजूद था। इस एक्ट के तहत अश्वेतों को बिना किसी शर्त के वोटर बनने की इजाजत दे दी गई। हालांकि इससे पहले इन्हे वोटर बनने के लिए शैक्षिक एग्जाम पास करना पड़ता था।

अश्वेतों के वोटिंग और अधिकारों की समस्या समाप्त हुई, तो मार्टिन ने गरीबी के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और शिकांगो पहुँच गया। शिकांगो में करीब 10 लाख अश्वेत रहते थे। मगर सारी अच्छी जॉब्स श्वेतों को मिलती थीं। अश्वेत मेहनत-मजदूरी पर मजबूर थे।

मार्टिन ने 1966 में शिकांगो में भी कई जनयात्रा और रैली निकाली। इस दौरान रूढ़िवादी ग्रुप्स ने इसके साथ मार-पीट भी की। मगर वो अपने आंदोलन पर डटा रहा और शहर के मेयर को मजबूर कर दिया कि अश्वेतों के साथ नौकरियों में भेद-भाव बंद किया जाय। इस दौरान मार्टिन अपनी फैमली के साथ शिकांगो शिफ्ट हो चुका था। इसने किसी पॉस एरिया की बजाय, अश्वेतों के एक गरीब एरिया में 4 कमरों का अपार्टमेंट किराये पर लिया ताकि इसके बच्चे गरीब अश्वेतों की समस्यायों से आगाह हो सकें। वो अपने नए अपार्टमेंट की मरम्मत भी खुद ही करता रहा।

Muhammad Ali इमेज

मार्टिन अश्वेतों के अधिकार के लिए तो लड़ ही रहा था। मगर इसने Boxer legend “Muhammad Ali” के साथ मिलकर वियतनाम युद्ध के विरुद्ध भी आवाज उठाई। मगर वियतनाम युद्ध से ज्यादा बड़ी समस्या थी अमेरिका में गरीबी का खात्मा। इस प्रकार 1968 में Martin Luther King ने कांग्रेस से गरीबी के खात्मे के लिए 30 अरब डॉलर्स खर्च करने की मांग की। अपनी मांग पूरी करवाने के लिए इसने वाशिंगटन की तरफ मार्च का भी ऐलान कर दिया और अपने समर्थकों को जमा करने लगा। मगर इस दौरान राज्य “टेनेसी” के शरह “मेमफिस” में सेनेटरी वर्कर्स ने सुविधाओं में कमी के खिलाफ हड़ताल कर दी। उन्होंने ने “I AM A MAN” या “मै इंसान हूँ” के नाम से अपना आंदोलन शुरू कर दिया। जिसे कुचलने के लिए फौज तलब कर ली गई।

अब मार्टिन ‘मेमफिस’ पहुँचा और सेनेटरी वर्कर्स के आंदोलन में शामिल हो गया। फिर वो इस शहर से जिन्दा ना लौट सका। Martin Luther King ने सेनेटरी वर्कर्स के आंदोलन को भी गरीबी के खात्मे के आंदोलन का हिस्सा बताकर मार्च शुरू कर दिया। इसे जान से मारने की धमकियाँ मिल रही थीं, मगर इसने परवाह नहीं की। 04 अप्रैल 1968 की शाम 06 बजे वो अपने होटल की बालकनी में खड़ा था कि अचानक एक गोली चली और सीधे इसके गर्दन में लगी। मार्टिन गिर पड़ा। इसके साथी पास ही खड़े थे, जिन्होंने कातिल की तरफ इशारा करके शोर मचाया। मगर कातिल भाग गया। एक घंटे बाद मार्टिन ने हॉस्पिटल में दम तोड़ दिया।

Martin Luther King “अश्वेतों का हीरो था”। इसकी मौत की खबर फैली तो हंगामे शुरू हो गए। अश्वेतों ने इमारतों और गाड़ियों को आग लगा दी और स्टोर्स लूट लिए। हंगामे में 40 से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई और हजारों जख्मी हुए। वाशिंगटन और शिकांगो समेत कई शहरों में हंगामे पर काबू पाने के लिए फौज तैनात कर दी गई। मार्टिन की मौत पर अमेरिकी सरकार ने 07 अप्रैल को शोक मानाने का भी ऐलान कर दिया।

‘JAMES EARL RAY’ इमेज

Martin Luther King का कातिल एक श्वेत ‘JAMES EARL RAY’ था। इसे 08 जून को लन्दन के हीथ्रो एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया गया और 99 साल कैद की सजा सुनाई गई। 1998 में जेल में ही इसकी मौत हो गई।

मार्टिन वाइफ

Martin Luther King का ताबूत इसके पुश्तैनी शहर अटलांटा ले जाया गया। यहां इसकी आखिरी प्रक्रिया पूरी की गई। प्राथमिक तौर पर इसे अटलांटा के साउथ व्यू श्मशान में दफन किया गया, लेकिन बाद में इसकी अस्थियों को किंग सेंटर हस्तांतरित कर दिया गया। यहां बाद में “मार्टिन की वाइफ, Coretta Scott King” को भी दफन किया गया। इस जगह से सिर्फ 2 मिनट की पैदल दूरी पर Martin Luther King, Jr. National Historical Park है। इस पार्क में Martin Luther King का पुश्तैनी घर जहाँ इसका बचपन गुजरा था और वो चर्च जहाँ इसने पहली जॉब की थी। आज भी सुरक्षित है। वाशिंटन डीसी में भी Martin Luther King, Jr. Memorial स्तिथ है। यहाँ ग्रेनाइट की एक चट्टान में Martin Luther King की प्रतिमा भी तराशी गई है।

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